रहीम दास जी के दोहे हिंदी भावार्थ सहित
1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गांठ परी जाय।।
भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि प्रेम का धागा बहुत कमजोर होता है। एक बार यदि वह टूट जाए तो फिर उसको जोड़ना मुश्किल होता है और यदि प्रेम का धागा जुड़ भी जाए तो उसमें गांठ पड़ जाती है।
2. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि चंदन के पेड़ पर सांप के लिपटे रहने के बावजूद उसकी खुशबू पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ठीक उसी प्रकार से, सज्जन व्यक्तियों पर बुरी संगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
3. वृक्ष कबहुं नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।
भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि पेड़ कभी अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और नदी कभी अपना जल स्वयं नहीं संचित करती है। ठीक उसी प्रकार से, परोपकारी व्यक्ति इस धरती पर दूसरों का भला करने के लिए जन्म लेते हैं।
4. रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।
भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि मोती की माला टूट जाने के बाद भी उसको दुबारा पिरो लिया जाता है क्योंकि वह सबको पसंद आती है। उसी प्रकार से यदि कोई सज्जन व्यक्ति आपसे रूठे तो उसे सौ बार मना लेना चाहिए।
5. खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।।
भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि जिस प्रकार से खीरे के कड़वेपन को दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे पर नमक लगाया जाता है। वैसे ही कड़वा बोलने वाले व्यक्तियों को भी उपयुक्त तरह से ही सजा देनी चाहिए।
6. दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।।
भावार्थ – कौआ और कोयल जब तक बोलते नहीं है तब तक उनकी पहचान करना मुश्किल है लेकिन बसंत ऋतु के आते ही कोयल की मधुर आवाज से इनके बीच का अंतर समाप्त हो जाता है।
7. वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी के रंग।।
भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि वह लोग इस धरती पर सबसे मूल्यवान होते हैं जिनका सारा जीवन परोपकार के कार्यों में लगता है। उनका जीवन ठीक उसी प्रकार से शोभायमान होता है जैसे किसी दूसरे के हाथों में मेहंदी लगाते समय अपने हाथों में भी मेहंदी का रंग चढ़ जाया करता है।
8. रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।।
भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि व्यक्ति को सदैव अच्छे समय का इंतजार करना चाहिए क्योंकि जब समय ठीक होता है तब उसके सारे काम स्वत: ही पूरे हो जाते हैं लेकिन जब व्यक्ति का समय खराब हो तो उसे मौन धारण कर लेना चाहिए।
9. निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ।
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।।
भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि व्यक्ति के हाथ में केवल कर्म करना लिखा है। उसे सिद्धि की प्राप्ति केवल भाग्य के आधार पर ही होती है। जैसे चौपड़ खेलते समय पासे तो व्यक्ति के हाथ में होते हैं लेकिन उसके दांव से वह सदैव अनभिज्ञ रहता है।
10. रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूं किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय।।
भावार्थ – यदि व्यक्ति किसी कार्य को एकाग्रचित होकर करता है तो उसे जरूर सफ़लता प्राप्त होती है। वैसे ही व्यक्ति यदि पूरे मन से ईश्वर को याद करता है तो वह ईश्वर को वश में कर लेता है।
11. एकै साधे सब है, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सिचिंबो, फुलै फुलै अघाय।।
भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि व्यक्ति को एक समय में ही एक ही कार्य करना चाहिए क्योंकि यदि आप एक साथ कई सारे कार्य करने की कोशिश करेंगे तो आप कभी सफल नहीं हो पाएंगे। यह नियम कुछ उसी प्रकार से है कि जब तक किसी पौधे की जड़ में पानी नहीं डालेंगे तब तक आपको उससे फूल या फल की प्राप्ति नहीं होगी।
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